Friday, January 28, 2011

मैं नहीं जानता

मैं नहीं जानता ये ज़िंदगी क्या है ?
मैं नहीं जानता मैं क्यों आया हूँ इस दुनिया में ?
मैं नहीं जानता मेरी मंज़िल क्या है ?
मैं नहीं जानता मुझे क्या चाहिए इस जीवन में ?
बस इतना जानता हूँ कि इक सागर है उम्मीदों का
उस सागर में मुझे डूबना है
अपने ख्वाबों को ढूँढना है
पर एक डर सा सताता है
मुझे कायर सा बनाता है
अपने ख्वाबों को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते कहीं खो ना जाऊं
अपने सपनो को बुनते-बुनते कहीं सो ना जाऊं

मैं नहीं जानता ये प्रकृति क्या है ?
मैं नहीं जानता क्यों बहती है ये नदियाँ ?
मैं नहीं जानता ये समय क्या है ?
मैं नहीं जानता क्यों बदलती है ये घड़ियाँ ?
बस इतना जानता हूँ कि इक वन है खुशियों का
उस वन में मुझे जाना है
ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना है
क्यों रूठीं है मुझसे खुशियाँ ज़रा सामने तो आओ
क्यों बिगड़ी है मेरी दुनिया ज़रा मुझको तो बताओ
अपनी खुशियों को पुकारते-पुकारते कहीं ठहर न जाऊं
अपनी दुनियां को सवारतें-सवारतें कहीं सहम न जाऊं

मैं नहीं जानता ये मौसम क्या है ?
मैं नहीं जानता क्यों आती है ये बहारे ?
मैं नहीं जानता ये रंग क्या है ?
मैं नहीं जानता क्यों भाते है ये नज़ारे ?
बस इतना जानता हूँ कि इक पिटारा है ख्वाहिशों का
उस पिटारे को मुझे खोलना है
अपने जवाबों को टटोलना है
पता नहीं जवाब मिलेंगें या नहीं
पता नहीं ख्वाब खिलेंगें या नहीं
अपने जवाबों को तलाशते-तलाशते कहीं भटक ना जाऊं
अपने ख़्वाबों को तराशते-तराशते कहीं बिखर न जाऊं